मानव भूगोल:-
वह भूगोल जो भौतिक पर्यावरण एवं मानव जनित सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण के मध्य अंतर्सम्बन्धों की संकल्पना प्रस्तुत करता है।
रैटजेल(जर्मनी):-
मानव भूगोल मानव समाजो और धरातल के बीच संबंधों का संष्लेषित अध्ययन है।इन्होंने ’’संष्लेषण’’ पर जोर दिया है।
एलन सी. सेपल(USA):- रैटजेल की शिष्या थी।
मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और क्रियाशील मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।
पाॅल विडाल-डी-ला ब्लाश (फ्रांस):-
हमारी पृथ्वी को नियंत्रित करने वाले भौतिक नियमों तथा इस पर रहने वाले जीवों के मध्य संबंधों के अधिक संष्लेषित ज्ञान से उत्पन्न संकल्पना।
मानव भूगोल की प्रकृतिः-
मानव भूगोल की प्रकृति का केन्द्र बिन्दु मानव क्रियाकलाप है। मानव अपने पर्यावरण के अनुसार क्रियाकलापों व रहन-सहन में अनुकूलन, समायोजन व रूपान्तरण करता है
मानव भूगोल की प्रमुख विचारधारा:-
1. पर्यावरणीय निश्चयवाद¼Environmental Determinism½
- आदिम मानव समाज और प्रकृति की प्रबल इच्छाशक्तियों बीच होने वाली अन्योन्यक्रिया पर्यावरणीय
निश्चयवाद हा जाता है।
- इसमें मानव को प्रकृति का दास माना जाता है।
- इसके अनुसार मनुष्य के प्रत्येक क्रिया कलाप को पर्यावरण से नियन्त्रित माना जाता है।
- इसे ’’ नियतिवाद’’ भी कहा जाता है।
2. संभववाद (Possibilism):-
- इस विचारधारा के अनुसार प्रकृति अवसर प्रदान करती है मानव तकनीक की सहायता से उसका उपयोग करता है और धीरे-धीरे प्रकृति का मानवीकरण हो जाता है। इस विचारधारा को संभववाद कहा जाता है।
- इसमें मानव को प्रभावी माना गया है।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए मानव बेहतर एवं अधिक सक्षम प्रौद्यौगिकी का विकास करता है।
3. नवनिश्चयवाद ¼Neo Determinism½
- इसके अनुसार मानव प्रकृति के नियमों का पालन करके उसपर विजय प्राप्त कर सकता है।
- यह संकल्पना दर्शाति है कि न तो यहाँ नितांत आवशकता की स्थिति है न ही नितांत स्वतंत्रता की स्थिति है।
- यह पर्यावरणीय निश्चयवाद एवं संभव वाद के बीच मध्य मार्ग को बताती है।
- इस विचार धारा को ’’ रूको एवं जाओ निश्चयवाद ’’ भी कहा जाता है।
- इस विचार धारा का प्रतिपादन ’’ ग्रिफिय टेलर’’(अमेरिका) ने किया।
