अध्याय -08 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार


अंतर्राष्ट्रीय व्यापार (International trade)

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व्यापार –

            वस्तुओं और सेवाओं के  आदान-प्रदान को व्यापार कहा जाता है|

Ø  व्यापार तृतीयक  क्रियाकलापों के अंतर्गत आता है|

(i)   अंतर्राष्ट्रीय व्यापार:-

 जब वस्तु अथवा सेवाओं का आदान-प्रदान दो देशों के मध्य होता है तो उसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है|

(ii)  राष्ट्रीय व्यापार:-

 जब व्यापार किसी देश की सीमाओं के अंदर होता है तो उसे राष्ट्रीय व्यापार कहा जाता है|

 वस्तु विनिमय-

                   वस्तु विनिमय के अंतर्गत वस्तुओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता है|

Ø आदिम समाज में व्यापार का आरंभिक स्वरूप वस्तु विनिमय व्यवस्था थी | जिसके अंतर्गत वस्तुओं के बदले वस्तु दी जाती थी |

Ø चकमक पत्थर, आब्सीडियन(आग्नेय कांच ), काउरी सेल, चीते के पंजे, ह्वेल के दांत, कुत्ते के दांत ,खालें ,बाल(फर ) ,मवेशी , चावल ,नमक , छोटे यंत्र , तांबा , चांदी , स्वर्ण , आदि का उपयोग वस्तु विनिमय व्यवस्था में प्रमुख रूप से किया जाता था |

 

 सैलरी(salary):- 

               सैलरी शब्द का उद्गम लैटिन शब्द सेलेरियम (salarium ) से हुआ है जिसका अर्थ है “ नमक के द्वारा भुगतान”

                

 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का इतिहास

Ø रेशम मार्ग:-  

            प्राचीन काल में रोम से चीन तक लगभग 6000 किलोमीटर लंबाई के व्यापारिक मार्ग को रेशम मार्ग कहा जाता था|

 इस मार्ग से भारत , पर्सिया(ईरान ), मध्य एशिया, के साथ-साथ चीन में बने  रेशम, उन , बहुमूल्य धातुओ तथा  अन्य महँगी  वस्तुओं का व्यापार होता था |

 

 
Ø  दास व्यापार :-

                पुर्तगालियों,डचो , स्पेनिश लोगों तथा  अंग्रेजों ने अफ्रीकी मूल निवासियों को पकड़ा और उन्हें बलपूर्वक बागानों में श्रम हेतु नए खोजे गए अमेरिका में प्रवाहित किया |

व्यापार के इसने स्वरूप को दास व्यापार कहा गया |

Ø दास व्यापार पर प्रतिबंध :-

                डेनमार्क (1792) , ग्रेट ब्रिटेन (1807) संयुक्त राज्य अमेरिका (1808)  ने दास व्यापार पर प्रतिबंध पर प्रतिबन्ध लगा दिया |

 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार:-

 

        (i)  राष्ट्रीय संसाधनों में भिन्नता :-

             

Ø भौगोलिक संरचना: -

                     भौगोलिक संरचना द्वारा धरातल ,कृषि संसाधन तथा पशु संसाधन में मिलने वाली विभिन्नतायें  निर्धारित होती है|

जैसे - पर्वतीय भाग पर्यटकों को आकर्षित कर राष्ट्रीय व्यवहार को बढ़ावा देते हैं तथा  निम्न भूमियों में कृषि संभाव्यता अधिक होती है|

 

Ø खनिज संसाधन:-

                     खनिज संसाधन संपूर्ण विश्व में असमान रूप से  वितरित है व खनिज संसाधन औद्योगिक विकास को आधार प्रदान करता है|

 

Ø जलवायु:-

                      किसी देश की जलवायु दशाएं उस देश में उत्पादित उत्पादों की विविधता को सुनिश्चित करती है जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बल मिलता है |

जैसे- ऊन उत्पादन ठंडे क्षेत्रों में ही हो सकता है व  केला ,रबर तथा कहवा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उग सकते हैं |

 
(ii)  जनसंख्या कारक :-

                                      विश्व के विभिन्न देशों में जनसंख्या का आकार ,वितरण तथा उनकी विविधता अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की गयी वस्तुओं के प्रकार तथा मात्रा को प्रभावित करती हैं|

 

Ø सांस्कृतिक  कारक-

                        विभिन्न देशों में मिलने वाली अलग-अलग संस्कृतियों में कला तथा हस्तशिल्प के विभिन्न रूप मिलते हैं|

 जैसे:- चीन द्वारा उत्पादित उत्तम कोटि का पोर्सलिन (चीनी मिट्टी का बर्तन ) तथा ब्रोकेड (किमखम-जरीदार या बूटेदार कपड़ा) ,ईरान के कालीन प्रसिद्ध हैं  जबकि उत्तरी अफ्रीका का चमड़े का काम ,इंडोनेशिया बटीक ( छींटवाला वस्त्र ) बहुमूल्य वस्त्र हस्तकला है |

 

Ø जनसंख्या का आकार:-

                         सघन जनसंख्या घनत्व वाले देशों में आंतरिक व्यापार होता है तथा बाह्य  व्यापार कम होता है|

  उत्तम जीवन स्तर रखने वाले देशों में आयातित मांगों उत्पादों की मांग अधिक होती है | जबकि निम्न जीवन स्तर रखने वाले देशों में आयातित उत्पादन की मांग कम रहती है |

                 (iii) आर्थिक विकास की प्रावस्था :-

  •   किसी देश की आर्थिक विकास की अवस्था से उसे देश के व्यापार की वस्तुओं का प्रकार निर्धारित होता है |जैसे - कृषि प्रधान देश में विनिर्माण वस्तुओं के लिए कृषि उत्पादों का विनिमय किया जाता है जबकि विश्व के औद्योगिक दृष्टि से संपन्न राष्ट्र मशीनरी व निर्मित माल का निर्यात करते हैं तथा कच्चे माल तथा खाद्यान्नों का आयात करते हैं|

                  (iv)  विदेशी निवेश की सीमा:-

  •   ऐसे विकासशील देश जिनके पास तेल-खनन , भारी अभियांत्रिकी तथा बागवानी कृषि आदि के विकास के लिए पर्याप्त पूंजी का अभाव है उन देशों में विदेशी निवेश व्यापार को बढ़ावा देता है |
  •  विश्व के औद्योगिक राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों में पूंजी प्रधान उद्योगों की स्थापना करते हैं तथा इसके बदले में वे अपने देश के लिए खाद्य पदार्थ तथा खनिजों का आयात सुनिश्चित करते हैं इसके अलावा अपने उद्योगों में निर्मित उत्पादों के लिए देश व विदेश में बाजार निर्मित करते हैं |

                     (v)  परिवहन :

  •   वर्तमान में रेल ,समुद्री मार्ग ,वायु परिवहन के विकास में विस्तार तथा प्रशिक्षण की बेहतर सुविधाओं ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा प्रदान किया है |

 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अस्तित्व में क्यों है :-

 

Ø  अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उत्पादन में विशिष्टीकरण का परिणाम है यदि विभिन्न देश वस्तुओं के उत्पादन या सेवाओं की उपलब्धता में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण को प्रयोग में लाते हैं तो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था को लाभ प्रदान करता है |

Ø  अंतर्राष्ट्रीय व्यापार वस्तुओं और सेवाओं के तुलनात्मक लाभ , परिपूरकता व  हस्तांतरणयता  के सिद्धांतों पर आधारित है|

Ø आजकल व्यापार विश्व के आर्थिक संगठन का आधार है तथा देश की विदेश नीति से संबंधित है |

Ø सुविकसित परिवहन तथा संचार प्रणाली से युक्त कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार में  भागीदारी से मिलने वाले लाभों को छोड़ने का इच्छुक नहीं है |

व्यापार संतुलन:-

                    व्यापार संतुलन किसी देश के द्वारा आयात तथा निर्यात की गई वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा को बताता है |

Ø धनात्मक या अनुकूल व्यापार संतुलन :-

                                    जब किसी देश का निर्यात का मूल्य  आयात की मूल्य  की तुलना में अधिक हो  तो उस देश का व्यापार संतुलन धनात्मक अथवा अनुकूल होता है |

 

Ø  ऋणात्मक अथवा प्रतिकूल व्यापार संतुलन:-

                                 यदि निर्यात का मूल्य  आयात के मूल्य  की तुलना में कम हो तो उस देश का व्यापार संतुलन ऋणात्मक अथवा  प्रतिकूल होता है |

 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रकार :-

                                     अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को दो प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है -

Ø द्विपर्श्विक  व्यापार :

                        दो देशों के द्वारा एक दूसरे के साथ किया जाने वाला व्यपार द्विपर्श्विक  व्यापार कहलाता है |

Ø बहु -पर्श्विक व्यापार :-

                       बहु -पर्श्विक व्यापार बहुत से व्यापारिक देशों के साथ किया जाता है | वही देश अन्य व्यापारिक देशो के साथ व्यापार कर सकता है |

                       

        मुक्त व्यापार :-

  •  व्यापार हेतु अर्थव्यवस्था को खोलने का कार्य मुक्त व्यापार अथवा व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है |
  • यह कार्य व्यपारिक गतिरोधों जैसे –सीमा शुल्क  को घटाकर किया जाता है | घरेलू उत्पाद और सेवाओं से प्रतिस्पर्धा करने के लिए व्यापार उदारीकरण सभी स्थानों  से वस्तु और सेवाओं के लिए अनुमति प्रदान करता है |

मुफ्त व्यापार के प्रभाव : -

Ø ुक्त व्यापार विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है |उनको विकास के समान अवसर न देकर बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है |

Ø मुक्त व्यापार को केवल संपन्न देशों के द्वारा ही बाजारों की ओर नहीं ले जाना चाहिए अपितु विकसित देशो को चाहिए कि स्वयं के बाजार को भी विदेशी उत्पादों से संरक्षित रखे |

                               अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन(WTO)

 GATT( एग्रीमेंट ऑन  ट्रेड एंड टैरिफ )-

1948 ई. में  विश्व को उच्च सीमा शुल्क और विभिन्न प्रकार की अन्य बाधाओ से मुक्त कराने उद्देश्य हेतु स्थापना की गई |

WTO (विश्व व्यापार संगठन)-

GATT के  सदस्य देशों के द्वारा राष्ट्रों के बीच मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य  से जनवरी 1995 में गेट को विश्व व्यापार संगठन में रूपांतरित कर दिया |

Ø WTO (विश्व व्यापार संगठन) का मुख्यालय जिनेवा स्विट्जरलैंड के में स्थित है |

Ø  विश्व व्यापार संगठन के 164 देश सदस्य हैं|

Ø  भारत भी विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक है

विश्व व्यापार संगठन के कार्य –

  •       विश्व व्यापार संगठन एकमात्र ऐसा अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य व्यापार तंत्र के लिए वैश्विक नियमों को नियत करता है तथा सदस्य देशों के मध्य विवादों का निपटारा करता है |
  •        विश्व व्यापार संगठन दूरसंचार और बैंकिंग जैसी सेवाओं तथा अन्य विषयों जैसे बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार को भी कार्यों में सम्मिलित करता है|

Ø डंप करना :- लागत की दृष्टि से नहीं वरन् भिन्न-भिन्न कारणों  से अलग-अलग कीमत की किसी वस्तु को दो देशों में विक्रय करने की प्रथा डंप करना कहलाती है |

 

 

                                                पत्तन

Ø अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की दुनिया में पोताश्रय एवं पतन को मुख्य प्रवेश द्वार कहा जाता है |

Ø पृष्ठ प्रदेश –

             पृष्ठ प्रदेश  किसी पत्तन का प्रभाव क्षेत्र होता है जो रेल व सड़क मार्ग से पतन  से अच्छी तरह से प्रभावित होता है। पृष्ठ प्रदेश के उत्पाद बंदरगाह तक भेजे जाते हैं और आयातित सामान पृष्ठ प्रदेश में उपभोग के लिए भेजा जाता है। 

Ø सैन फ्रांस्सिको विश्व का सबसे बड़ा स्थलरुद्ध पत्तन है |

         पत्तनो का वर्गीकरण :-

           निपटाए गए नौभार के अनुसार पत्तनों के प्रकार-

  •    औद्योगिक पत्तन :-

   यह पत्तन थोक नौ भार का परिवहन करते हैं | जैसे :- अनाज,चीनी ,अयस्क ,तेल , रसायन आदि    

  •    वाणिज्यिक पत्तन : -

                यह पत्तन सामान्य नौभार उत्पादों तथा  विनिर्मित वस्तुओं व यात्री-यातायात का भी परिवहन  करते हैं|

Ø जैसे :- लेनिनग्राद पत्तन

  •                 विस्तृत पत्तन :-

                यह पत्तन बड़े परिमाण में सामान्य नौभार का थोक में प्रबंध करते हैं |

Ø संसार में अधिकांश महान पत्तन विस्तृत पत्तन के रूप में वर्गीकृत किए गए है |

अवस्थित के आधार पर पत्तनो के प्रकार :-

(i)  अंतर्देशीय पत्तन :-  
          यह पत्तन समुद्री तट से दूर अवस्थित होते हैं यह समुद्र से एक नदी अथवा नहर द्वारा जुड़े होते हैं| ऐसे पत्तन पर चौरस तल वाले जहाज या बजरे द्वारा ही गम्य  होते हैं जैसे :-  

Ø मैनचेस्टर - एक नहर से जुड़ा है|

Ø मेंफिश - मिसिसिपी नदी पर स्थित है|

Ø मैंनहीम तथा ड्यूसबर्ग -राइन नदी पर स्थित है|

Ø कोलकाता- हुगली नदी पर स्थित है

(ii)  बाह्य पत्तन :

         यह पत्तन गहरे जल के पतन है जो वास्तविक पत्तन से दूर बने होते हैं ।यहां बड़े आकार के जहाज पहुंचते हैं हैं तथा पैतृक पत्तनो को अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं।

Ø जैसे-  पिरेइअस   (एंट्रेंस तथा यूनान)

 

विशिष्टिकृत कार्यकलापों के आधार पर पत्तनो के प्रकार :-

(i)  तेल पत्तन  

  •                यह पत्तन तेल के पक्रमण और  नौ परिवहन का कार्य करते हैं |

Ø टैंकर पत्तन: - मारकाईबो (वेनेजुएला) , एस्सखीरा (ट्यूनीशिया), त्रिपोली (लेबनान)

Ø तेल शोधन पत्तन:- अबादान (पर्शिया की खाड़ी)
(ii)        मार्ग पत्तन ( विश्राम पत्तन ) :-

  •         ये पत्तन है जो मूल रूप से मुख्य समुद्री मार्ग पर विश्राम केंद्र के रूप में विकसित हुए ,जहां पर जहाज ईंधन भरने , जल भरने तथा खाद्य सामग्री लेने के लिए लंगर डाला करते थे|

Ø जैसेअदन, होनोलूलू तथा सिंगापुर

(iii)  पैकेट पत्तन (फेरी पत्तन) :-

  •   ये पैकेट स्टेशन विशेष रूप से छोटी दूरियों को तय करते हुए जली क्षेत्रों के आर पार डाक तथा यात्रियों के परिवहन से जुड़े होते हैं | जैसे:-
  • Ø  इंग्लिश चैनल के आर पार डोवर (इंग्लैंड) तथा कैलाइश (फ्रांस )

     (iv) ंत्रपो पत्तन :   

  •  यह वे एकत्रण केंद्र है जहाँ  विभिन्न देशों से निर्यात होने हेतु वस्तुएं लाई जाती है  | जैसे :-

Ø सिंगापुर (एशिया )

Ø  रोटरडम (यूरोप )

Ø  कोपनहेगन (बाल्टिक  क्षेत्र)

(v) नौसेना पत्तन :-

  •  यह केवल सामरिक महत्व के पतन है यह पत्तन युद्धक जहाजों को सेवाएं देते हैं और उनके लिए मरम्मत कार्यशालाएं चलाते हैं |

Ø जैसे :- कोच्चि तथा कारवाड

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