भू-संसाधन एवं कृषि
भू राजस्व विभाग और भू सर्वेक्षण विभाग भूमि उपयोग और भू क्षेत्र की जानकारी को अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत करते हैं।
भू राजस्व विभाग:-
Ø यह भूमि उपयोग संबंधी अभिलेख रखता है और भूमि के विभिन्न संवर्गों में वर्गीकरण करता है।
Ø इनके संवर्गों का कुल योग रिपोर्टिंग क्षेत्र के बराबर होता है । भू राजस्व विभाग द्वारा प्रस्तुत क्षेत्र समय-समय पर कम या अधिक हो सकता है।
भू सर्वेक्षण विभाग:-
Ø यह विभाग भौगोलिक क्षेत्र की स्थायी जानकारी रखता है।
Ø भू सर्वेक्षण विभाग द्वारा प्रस्तुत कुल भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग के द्वारा किए गए सर्वेक्षणों पर आधारित होता है, और यह स्थायी रहता है।
भू राजस्व विभाग ने भूमि उपयोग को 9 संवर्गों में विभाजित किया है:-
1. वनों के अधीन क्षेत्र
2. बंजर और व्यर्थ भूमि
3. गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि
4. स्थाई चारागाह क्षेत्र
5. विविध तरु फसलों और उपवनों का क्षेत्र
6. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि
7. वर्तमान परती भूमि
8. पुरातन परती भूमि
9. निवल बोया गया क्षेत्र
1. वनों के अधीन क्षेत्र:-
Ø यह वह क्षेत्र होता है जिसे सरकार द्वारा वन क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
Ø इसमें वे क्षेत्र भी शामिल होते हैं, जहां वनों का विकास संभव हो सकता है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि इन क्षेत्रों में वर्तमान में वन मौजूद हों।
Ø वर्गीकृत वन क्षेत्र और वास्तविक वन क्षेत्र में भिन्नता हो सकती है।
2. बंजर एवं व्यर्थ भूमि:-
Ø वह भूमि जो वर्तमान में नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करके भी कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती, इसे बंजर और व्यर्थ भूमि के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
Ø इसमें बंजर पहाड़ियां, मरुस्थल, चट्टानी क्षेत्र आदि शामिल होते हैं।
3. गैर कृषि कार्य में प्रयुक्त भूमि:-
Ø इस संवर्ग में उन भूमियों को सम्मिलित किया जाता है, जो कृषि कार्य के अलावा अन्य उपयोगों के लिए प्रयोग होती हैं, जैसे ग्रामीण और शहरी बस्तियां, सड़कें, नहरें, उद्योग, दुकानें आदि।
Ø द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों की वृद्धि के साथ इस भूमि का उपयोग बढ़ता है।
4. स्थायी चारागाह:-
Ø वह भूमि है जो पशुओं के चरने के लिए उपयोग की जाती है। अधिकांशतः इस भूमि पर ग्राम पंचायत या सरकार का अधिकार होता है, जबकि कुछ हिस्सा निजी स्वामित्व में भी हो सकता है।
5. विविध तरु फसलों में उपवनों के अंतर्गत क्षेत्र:-
Ø इस संवर्ग में उद्यान और फलदार वृक्षों वाली भूमि शामिल होती है, जो प्रायः निजी स्वामित्व की होती है।
6. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि:-
Ø वह भूमि जो पिछले 5 या अधिक वर्षों से कृषि कार्य रहित रही है, इसे कृषि योग्य व्यर्थ भूमि कहा जाता है।
Ø यह भूमि खेती के लिए उपयुक्त है, लेकिन वर्तमान में इसका उपयोग नहीं हो रहा है।
7. वर्तमान परती भूमि:-
Ø वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम से समय के लिए कृषि रहित रहती है, इसे वर्तमान परती भूमि कहा जाता है।
Ø इस भूमि को कुछ समय के लिए बिना खेती के छोड़ने से इसकी उर्वरता प्राकृतिक रूप से वापस आ जाती है।
8. पुरातन परती भूमि:-
Ø वह भूमि है जो 1 वर्ष से अधिक और 5 वर्ष से कम समय के लिए कृषि रहित रहती है। इसे पुरातन परती भूमि कहा जाता है।
9. निवल बोया गया क्षेत्र:-
Ø वह भूमि जिसमें वास्तविक रूप से फसलें उगाई व काटी जाती हैं। इसे निवल बोया गया क्षेत्र कहा जाता है।
