आर्थिक क्रियाऐंः-
मानव के वो क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है। आर्थिक क्रिया कहलाते हैं।आर्थिक क्रियाओं के प्रकार:-
- प्राथमिक क्रियाऐं
- द्वितीयक क्रियाऐं
- तृतीयक क्रियाऐं
- चतुर्थक क्रियाऐं
प्राथमिक क्रियाऐं (प्राथमिक क्रियाकलाप) :-
प्राथमिक क्रियाओं के उदाहरणः-
- आखेट
- भोजन संग्रह
- पशुचारण
- मछली पकड़ना
- वनो से लकड़ी काटना
- कृषि
- खनन
आखेट एवं भोजन संग्रह:-
- भोजन संग्रह व आखेट प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाऐं है।
- आदिकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए आखेट व भोजन संग्रह पर निर्भर रहता था।
- प्राचीन काल में आखेट के लिए पत्थर, लकड़ी के बने औजार तथा तीर का प्रयोग करते हैं।
- आदिम कालीन समाज के लोग अपने भोजन, वस्त्र एवं शरण की आवष्यकता पूर्ति हेतु पशुओं एवं वनस्पति का संग्रह करते हैं।
- कम पूंजी एवं कम तकनीक की आवश्याकता होती है।
विश्व भोजन संग्रह वाले क्षेत्रः-
(i) उतरी कनाडा (ii) उतरी यूरेशिया (iii) दक्षिणी चिली
चिकलः-
पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग:-
- छालः- कुनैन, चमड़ा तैयार करना व कार्क के लिए
- पतियांः- पेय पदार्थ जैसे चाय, दवाईयाँ, कातिवर्द्धक वस्तुऐं बनाने हेतु
- रेशा :- कपड़ा
- दृढ फलः- भोजन एवं तेल
- तनाः- रबड़, बलाटा, गोद, राल बनाने में
विश्व पर भोजन संग्रह का महत्व कम होने का कारणः-
- भोजन संग्रह द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते।
- अच्छी किस्म एवं कम दाम वाली कृत्रिम उत्पादों ने भोजन संग्रह के उत्पादों का स्थान ले लिया है।
पशुचारण :-
मानव ने विभिन्न जलवायुविक दशाओं वाले क्षेत्रों में पाये जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतु बनाया।
पशुचारण व्यवसाय के प्रकारः-
(2) वाणिज्य पशुधन पालन
चलवासी पशुचारण:-
- चलवासी पषुचारण जीवन-निर्वाह का प्राचीन व्यवसाय रहा है।
- इसमें अनेक प्रकार के पशुओं का रखा जाता है।
- चलवासी पशुचारण में पशुपालक चारे एवं जल की खोज में एक-स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते रहते हैं।
- चलवासी पशुचारण में पशु प्राकृतिक रूप जन्म लेते हैं। विशेष देखभाल नहीं की जाती है।
- चलवासी पशुचारण जीवन निर्वाह पद्धति है जिसमें स्थानीय आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र, आवास व अन्य की पूर्ति की जाती है।
- मानवीय श्रम प्रधान व्यवसाय है।
- चलवासी पशुचारण के विश्व के प्रमुख क्षेत्र:-
- (i) अफ्रीका के एटलाण्टिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक(ii) युरोप एवं एशिया का टूण्ड्रा प्रदेश ।(iii) दक्षिणी-पश्चिम अफ्रीका एवं मेडागास्कर।
वाणिज्य पशुधन पालन:-
- वाणिज्यक पशुधन पालन बाद का नया व्यवसाय है।
- वाणिज्य पशुधन पालन में उस क्षेत्र की भौगोलिक दशा में रहने वाले विषेश पशुओं जैसे भेड़, बकरी गाय -बैंल एवं घोडे. को रखा जाता है।
- वाणिज्य पशुधन पालन एक निष्चित स्थान पर बाड़ो में किया जाता है। चारे व पानी की व्यवस्था वहीं की जाती है।
- इसमें पशुओं को वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार पाला जाता है तथा विशेष देखभाल की जाती है।इसमें दूध, मांस, ऊन, खालों आदि का उत्पादन होता है। जिसका अन्य क्षेत्रों के साथ व्यापार किया जाता है।
- यह पूंजी प्रधान व्यवसाय है।
वाणिज्य पशुधन पालन के विश्व के प्रमुख क्षेत्रः-
(i) न्यूजीलैण्ड
(ii ) अर्जेन्टाइना
(iii) उरूग्वे
(iv) आस्ट्रेलिया
(v) संयुक्त राज्य अमेरिका
कृषि :-
भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाओं के प्रभाव के कारण कृषि की विभिन्न प्रणालियां देखी जाती है।
1निर्वाह कृषिः-
इस कृषि में कृषि उत्पादों का सम्पूर्ण अथवा लगभग उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है।
निर्वाह कृषि के प्रकारः-
(1) आदिकालीन निर्वाह कृषि अथवा स्थानांतरणषील कृषि, कर्तन एवं दहन कृषि
(2) गहन निर्वाह कृषि:-
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि
(ii)चावल रहित गहन निर्वाह कृषि
(1) आदि कालीन निर्वाह कृषिः-
उष्ण कटीबंधीय क्षेत्रों में आदिम जाति के लोग यह कृषि करतें हैं।
क्षेत्रः- 1. अफ्रीका, दक्षिणी एवम्म ध्य अमेरिका का उष्ण कटिबंधीय भाग।
2. दक्षिण-पूर्वी एशिया
- इस कृषि में वनस्पति को काटकर जलाया जाता है इसको राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इसलिए आदिकालीन निर्वाह कृषि को ’’कर्तन एवं दहन कृषि’’ भी कहा जाता है।
- 3 से 5 वर्ष में जब मिट्टी का उपजाऊपन खत्म हो जाता है तो उस क्षेत्र को छोड़कर नये क्षेत्र में कृषि की जाति है।
- कुछ समय पश्चात पुनः पहले वाले कृषि क्षेत्र में कृषक कृषि करने आ जाते हैं। इस प्रकार झूम चक्र चलता है।
- भूमि की उर्वरता कम होना इस कृषि की मुख्य समस्या है।
आदि कालीन निर्वाह कृषि को उष्णकटीबंधीय क्षेत्रों में निम्न नामों से जाना जाता है:-
- भारत के उतरी-पूर्वी राज्य -- झूमिंग
- मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको-- मिल्पा
- मलेषिया एवं इंडोनेषिया-- लादांग
(2) गहन निर्वाह कृषिः-
यह कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है।
चावल प्रधान गहन कृषिः-
- इस कृषि की प्रमुख फसल-चावल है।
- खेतों का आकार छोटा होता है।
- इस कृषि में कृषि कार्य में सम्पूर्ण परिवार लगा रहता है।
- मानव श्रम अधिक होती है।
- सिंचाई की आवष्यकता होती है।
- पशुओं की गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग होता है।
- इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक जबकि प्रति व्यक्ति उत्पादन कम होता है।
चावल रहित गहन कृषिः-
इस कृषि की प्रमुख फसलेंः-
गेहँू, ज्वार, बाजरा, सोेयाबीन, जौ आदि है।
2.रोपण कृषिः-
- इस कृषि में कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इन्हें बागान कहा जाता है।
- इसमें अधिक पूँजी, उच्च प्रबंध एवं तकनीकी आधार तथा वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
- इसमें सस्ते श्रमिक एवं यातायात साधनों की आवश्याकता होती है।
- इस कृषि का अधिकतर उत्पाद निर्यात किया जाता है।
रोपण कृषि क्षेत्रः-
- भारत व श्रीलंका -- चाय
- मलेषिया -- रबड़
- पश्चिमी द्वीप समूह-- गन्ना व केले
- फिलीपीन्स -- नारियल व गन्ना
- इंडोनेशिया -- गन्ना
- ब्राजील -- काॅफी
फेजेंडाः- ब्राजील में काॅफी के बागानों को फेजेंडा कहा जाता है।
3. विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि :-
- यह कृषि विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में की जाती है।
- खेतों का आकार बड़ा होता है।
- इसमें कृषि कार्य मशिनों द्वारा किये जाते हैं।
- प्रतिव्यक्ति उत्पादन अधिक होता है परन्तु प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है।
- इस कृषि की मुख्य फसल गेहूं है इसके अलावा जौ, मक्का, राई, जई भी उगाई जाती है।
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि के कृषि क्षेत्रः-
- यूरेशिया -- स्टेपीज
- उतरी अमेरिका -- प्रेयरीज़
- अर्जेटाइना -- पंपाज
- दक्षिण अफ्रीका -- वेल्डस
- आस्ट्रलिया -- डाउंस
- न्यूजीलैंड -- केटरबरी
4. मिश्रित कृषिः-
इस कृषि में फसलों के साथ पशुओं का भी पालन किया जाता है
- खेतों का आकार मध्यम होता है।
- फसल उत्पादन व पशुपालन साथ-साथ किया जाता है।
- दो प्रकार की फसल उगाई जाती हैः- खाद्यान्न फसल व चारे की फसल
- फसलों के साथ पशु जैसेः- मवेशी , भेड़, सूअर एवं कुक्कुट आय के प्रमुख स्त्रोत है।
- शस्यावर्तन एवं अतः फसलों कृषि से मृदा की उर्वरता बनाये रखा जाता है।
- अधिक पंूजी व्यय होती है।
- कुश ल एवं योग्य श्रमिकों की आवश्याकता होती है।
कृषि क्षेत्रः-
अत्यधिक विकसित भागों में यह कृषि की जाती है।
- उतरी पश्चिमी यूरोप
- उतरी अमेरिका के पूर्वी भाग
- यूरेशिया के भाग
- दक्षिणी महाद्वीपों के समशीतोष्ण अक्षांश वाले भाग
5.डेरी कृषिः-
इस कृषि में दुधारू पशुओं को उन्नत एवं दक्ष तरीके से पाला जाता है।
- इस कृषि में दुधारू पशुओं का पालन किया जाता है।
- इसमें अधिक पूंजी की आवश्याकता होती है।
- पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन, पशु चिकित्सा की आवष्यकता होती है।
- वर्ष भर गहन श्रम की आवश्याकताहोती है कोई अन्तराल नहीं होता है।
- डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केन्द्रो के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पादों के अच्छे बाजार होते हैं।
- पाष्चुरीकरण एवं प्रषीतकों के उपयोग से डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है।
डेरी कृषि के क्षेत्रः-
- उतरी पश्चिमी यूरोप
- कनाडा
- न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी-पूर्वी, आॅस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया
6.भूमध्यसागरीय कृषिः-
- अंगूर की कृषि भूमध्य सागरीय क्षेत्र की मुख्य विषेषता है।
- भूमध्य सागरीय क्षेत्र में खट्टे फलों का उत्पादन महत्वपूर्ण है।
- इन क्षेत्रों में अंजीर व जैतून का भी उत्पादन होता है।
- शीत ऋतु में USA तथा यूरोप में फलों एवं सब्जियों की पूर्ति यहां से ही होती है।
7. बाजार के लिए सब्जी एवं उधान कृषिः-
- इस कृषि में सब्जियां, फल एवं पुष्प का उत्पादन किया जाता है।
- बाजारीय सब्जी कृषि नगरीय क्षेत्रों के समीप की जाती है क्योंकि ताजा सब्जियाँ, फल आदि की मांग नगरीय क्षेत्रों में अधिक होती है।
- बाजारीय सब्जी कृषि को ‘‘ ट्रक कृषि‘‘ भी कहा जाता है। क्योंकि ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी जो एक ट्रक रात भर में तय करता है। इस आधार पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है।
- नीदर लैंड ट्यूलिप नामक पुष्प की खेती में विशिष्ट स्थान रखता है।
कृषि क्षेत्रः-
- उतरी पष्चिमी यूरोप
- संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) उ.पू.भाग
- भूमध्य सागरीय प्रदेश
8.सहकारी कृषिः-
- जब कृषक का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करे उसे सहमकारी कृषि कहतें हैं।
- सहकारी संस्था कृषकों को सभी रूपों में सहायता करती है। यथा यन्त्र खरीदने, खाद-बीज क्रय व प्रसंस्कृत साधनों हेतु।
- यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैंड, बेल्जियम, स्वीडन, इटली में सह कृषि की जाती है।
- डेनमार्क में सहकारी कृषि सर्वाधिक सफल रहीं ।
9.सामूहिक कृषिः-
- सामूहिक कृषि का आधार भूत सिद्धान्त यह है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है।
- सरकार उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित करती है तथा उत्पादन सरकार ही खरीदती है।
- इस कृषि का प्रारम्भ सोवियत संघ में हुआ सोवियत संघ में सामूहिक कृषि को "कोलखहोज" कहा जाता है।
खननः-
खनीजों को भूमि से खोदकर निकालना खनन कहलाता है।
खनन की विधियाँः-
(i) धरातलीय खनन अथवा विवृत खनन
(ii) भूमिगत अथवा कूपकी खनन
(i) धरातलीय खननः-
- जब खनीज धरातल के उपरी भाग में होता है तो धरातलीय खनन का प्रयोग होता है इसे विवृत खनन भी कहतें हैं।
- यह खनन सस्ता व कम जोखिम भरा होता है।
(ii) भूमिगत खननः-
- जब खनीज धरातल की गहराई में होता है तो भूमिगत खनन का प्रयोग होता है इसे कूपकी खनन भी कहतें हैं।
- यह खनन अत्यधिक खर्चीला एवं जोखिम भरा होता है।
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारकः-
- भौतिक कारकः- खनीजों के निक्षेपों के आकार श्रेणी एवं उपस्थिति।
- आर्थिक कारकः- खनीजों की मांग, तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, पंूजी, यातायात श्रम पर होने वाला व्यय।


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